शहर में ढूंढ रहा हूँ कि सहारा दे दे
शहर में ढूंढ रहा हूँ कि सहारा दे दे
कोई हातिम जो मेरे हाथ में कासा दे दे
पेड़ सब नगेँ फ़क़ीरों की तरह सहमे हैं
किस से उम्मीद ये की जाये कि साया दे दे
वक़्त की सगँज़नी नोच गई सारे नक़श
अब वो आईना कहाँ जो मेरा चेहरा दे दे
दुश्मनों की भी कोई बात तो सच हो जाये
आ मेरे दोस्त किसी दिन मुझे धोखा दे दे
मैं बहुत जल्द ही घर लौट के आ जाऊँगा
मेरी तन्हाई यहाँ कुछ दिनों पेहरा दे दे
डूब जाना ही मुक़द्दर है तो बेहतर वरना
तूने पतवार जो छीनी है तो तिनका दे दे
जिस ने क़तरों का भी मोहताज किया मुझ को
वो अगर जोश में आ जाये तो दरिया दे दे
तुम को “राहत” की तबीयत का नहीं अन्दाज़ा
वो भिखारी है मगर माँगो तो दुनिया दे दे
राहत इन्दौरी
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है
राहत इन्दौरी